मिट्ठू ♥️
सालों पहले की बात है, हमारा गाँव बहुत अलग था, आज की तुलना में। बिजली कम थी, पर समय ज़्यादा था। सुविधाएं कम थीं, मगर सुकून बहुत ज़्यादा था। हम सब पड़ोस के बच्चे मिलकर ख़ूब खेला करते थे। गाँव में बिजली एक हफ़्ते दिन में और एक ,हफ़्ते रात में आया करती थी। शाम होते ही लालटेनें जल जाया करतीं और हमारे चाचा अलजेब्रा पढ़ाना शुरू कर देते थे। सवाल गलत तो थप्पड़ चालू! हम सब सुबह जल्दी उठ जाया करते थे और खेलना शुरू कर देते थे। एक सुबह, जब मैं उठा, तो खिड़की पर एक प्यारा सा तोता मुझे निहार रहा था। हल्की सूरज की किरणों में उसके हरे पंख इतने सुंदर लग रहे थे कि मैं उसे बस देखता ही रह गया। मैंने उसके पास जाने की कोशिश की, लेकिन वो फुर्र से उड़कर आंगन में बिखरे धान के दानों को खाने लगा। अब वो रोज़ ही आता और हमारी छत पर पड़े धान को बड़े चाव से खाता। शाम को जब सब बच्चे इकट्ठा हुए, तो सबने मिलकर उसे पकड़ने की योजना बनाई। हम जैसे ही उसे पकड़ने की कोशिश करते, वो उड़ जाता। लेकिन फिर अगली सुबह आ जाता। ऐसे ही कई दिन बीत गए। फिर किसी ने अपना 'फिजिक्स दिमाग' लगाया और एक बड़ी सी टोकरियाँ लाने की बात कही। ...