समोसे वाले बाबा ❤️
होली की छुट्टियां पड़ी हुई थी! मैं अपने मित्र को बस स्टॉप तक छोड़ने गया हुआ था, दिन के करीब 3 बज रहे थे, तेज धूप थी,उसे छोड़ कर वापस मै हॉस्टल के लिए आ रहा था, भूख भी काफी लगी हुई थी मैंने सोचा कुछ खाते है, ठंडी कोल्ड ड्रिंक के साथ, मेरी नजर समोसे वाले बाबा पे पड़ी जो नीचे बैठ कर एक छोटा सिलिंडर एक डाली और 5 समोसे लेकर उनके बिकने का इन्तेजार कर रहे थे, ये 5 समोसे उनके तबसे नहीं बिके थे जब मैने आते वक्त भी इन्हे वैसे ही देखा था वही 5, मेरा समोसा खाने का बिल्कुल मन नहीं था और ये समोसा तो बिल्कुल नहीं कबसे बना हुआ होगा, और ऐसे खुले में,! मेरी नजर बाबा पे पड़ती है जो मेरी तरफ इतनी आशा से देख रहे थे, जैसे छोटे बच्चे खिलौनों की तरफ देखते है, बाबा ने एक पुरानी शर्ट पहनी हुई थी उनकी उम्र करीब 80 साल रही होगी, उनके फटे गमछे को धूप चीरती हुई उनकी सीधा चेहरे पर पड़ रही थी! मैं आगे बढ़ गया फिर रुका नहीं मुझे ये समोसे लेने है। मैं उनके पास गया और बोला कितने के हैं समोसा, उन्होने कहा यहा बैठो बेटा 10 के 4 हैं, मैंने उन्हे 10 रुपये दिए उन्होने मुझे 5 समोसे दिए मैंने कहा 4 ही हैं ना, उनका जवाब था तुम मेरे बेटे जैसे हो 5 ले लो,! मैं वही बैठ कर समोसे खाने लगा, बिल्कुल ठंडे होने के बावजूद भी उनमे गजब का स्वाद था! मैंने उनसे कहा आप समोसे कबसे नहीं बिके, यहा हज़ारों मे बच्चे रहते हैं, उन्होंने बीच मे रोकते हुए कहा बेटा लोग रेस्त्रां में पंखे के नीचे बैठ कर, खाते हैं,! मैं सोचने लगा कि आज कल के दौर मे लोगो के अंदर संवेदना कम होती जा रही! अंग्रेजी बोलने पिज्जा बर्गर खाने का दौर है, हम जब बचपन मे हिंदी कहानिया पढ़ते थे कितने करुणा से भर जाते थे! मुझे मुंशी प्रेम चन्द्र की कहानी कफन याद आ रही थी, जिसमे घीसू और माधव ने 20 साल पहले भर, पेट खाना खाया था, माधव अपने बीमार बीवी के मरने का इन्तेजार करता है! की वो मर जाए और लोग हमे पैसे दे और हम भर पेट भोजन करे, उसकी बीमार पत्नी कराहते हुए मर जाती है, और बेदर्द माधव और घीसू उसके मरने के नाम पर ठाकुर से कफन के पैसे मांगते हैं, और उस का भर पेट भोजन करते हैं,और बुधिया को दुआएं देते है कि तू रानी थी तेरे मरने के बाद हमे भर पेट खाना मिला, कितना करुणा से भर गया था मै ये कहानी पढ़ने के बाद, क्या आज का दौर वैसा ही हैं क्या हम वैसे ही है, कुछ कहानिया खत्म तो हो जाती है! लेकिन कुछ सवाल छोड़ जाती है उनपे विचार करियेगा! आज की दुनिया जो pubg खेल के बड़ी हो रही! एंटरटेनमेंट के नाम पे हिंसा गाली ये सब देख रही, क्या उसके अंदर वे भाव बचे हैं!? मैंने समोसे खाए और उन्हे 15 रुपए देने चाहे, मेरे बहोत कहने पर भी उन्होंने एक रुपया भी अधिक नहीं लिया, मैं वहा से चला गया, और हर सुबह मैं उठ कर उनके पास समोसा खाने जाने लगा धीरे धीरे बाबा से दोस्ती सी हो गयी मै वहा जाता उनसे बाते करता ! मैंने उनसे पूछा पहले आप क्या करते थे, उन्होंने कहा कि मैंने करीब 30 साल रिक्सा चलाया, अब सरीर मे इतना दम नहीं रहा कि रिक्शा खीच सकु, मैंने कुछ और जनाना चाहा उन्होने बताया कि उनके दो बेटे हैं, एक बम्बई मे नोकरी करता है! वो हमे पूछता तक नहीं,छोटा बेटा मजदूरी कराता था हमारा घर चलता था, लेकिन पिछले साल वह मजदूरी करते वक्त गीर गया बहुत चोट आई अब तो चल फिर भी नहीं पाता मजदूरी कहा से करेगा, जो कुछ बचा खुचा था दवाई पे लगा दिया घर मे एक बहु है, 2 नाती है, सबका खर्चा इन्ही समोसे के बिकने से ही चलता है,80 साल के उम्र मे जिम्मेदारीयो का इतना बोझ और गजब का हौसला था बाबा मे, इनके झुर्रियों वाले हाथो मे गजब की ताकत थी। चलती का नाम जिन्दगी नहीं लड़ते रहने का नाम जिन्दगी है! वाह बाबा ❤️, हम थोड़े मे ही इतना परेशान टेंशन डिप्रेशन और पता नहीं क्या क्या हो जाते हैं! मै सोच रहा था कि काश मै इतने योग्य होता कि मै इनकी कुछ मदद कर पाता,मै सोचता रहता था कि मै कभी तो बाबा को खुस करूंगा, कभी तो इनको देने के सुख को महसूस करूंगा! लेकिन कैसे एक रुपया तो ज्यादा लेते नहीं ये, कुछ दिन यू ही निकलते गए! एक बार हमारे हॉस्टल पे कुछ पुराने मित्र आए सबने कहा कुछ खिलाओ पार्टी दो, मैंने कहा रुको समोसे खिलाता हू शाम का समय था इस वक्त तो बाबा मिलेंगे आज उनके सारे समोसे एक बार मे खरीद लूंगा, और कहूँगा घर जाओ आराम करो यही सोचते हुए मै तेजी से वहा जा रहा था जहा वो बैठा करते थे! लेकिन ये क्या वो तो आज थे ही नहीं मैंने आसपास कयी जगह देखा वो कही भी ना दिखे, मै हातास वापस चला आया, कई दिन बीत गए बाबा अब दिखते ही नहीं थे, मै सोचता था उनका बेटा ठीक हो गया होगा सायद, कभी कभी ये भी खयाल आता रहा कि वो बहोत बीमार भी थे, कही वो नहीं नहीं कोई और कारण होगा, दिन बितते गए परीक्षाएं खतम हो गयी, बारी आई इस सहर को हमेशा के लिए अलविदा कहने का! मै बस की खिड़की वाली सीट पर बैठ कर इस सहर को निहारते हुए अलविदा कह रहा था, मन मे भावनाओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था! बहोत सारे ऐसे दोस्त थे जो याद आने वाले थे! बहोत सारे ऐसे भी दोस्त थे जिनसे मै जिंदगी मे कभी दोबारा नहीं मिलने वाला था! उनमे एक समोसे वाले बाबा भी थे, बस धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी और यह सहर तेजी से पीछे छूटता जा रहा था!
- - - - - - - निर्भय आनंद
Comments
Post a Comment